(नागपत्री एक रहस्य-30)

लक्षणा का इतना उत्साह कहानी सुनने में वो भी सर्प और नागों की, यह देख लक्षणा की दादी सावित्री देवी और लक्षणा की मां चंदा भी अपनी बेटी का उत्साह देख खुश हो रही थी, और उन्हें आश्चर्य भी हो रहा था कि आखिर हमारी इतनी छोटी बच्ची को नाग और सर्पों की कहानी में इतनी दिलचस्पी आ रही है, और वह कितने ध्यान पूर्वक अपनी दादी के मुख से कहानी सुने जा रही थीं, क्योंकि उस उम्र में बच्चों को कहां नाग और सर्पों की कहानी सुनने में दिलचस्पी आती है।

                    तब लक्षणा अपनी दादी से कहती है, कि दादी आप भूल गए हो क्या??आपने कहा था कि थोड़ी देर के बाद मैं तुम्हें आगे की कहानी सुनाऊंगी, तब सावित्री देवी मुस्कुराते हुए कहती है कि हां मेरी बच्ची मुझे याद है, आओ मैं तुम्हें इसके आगे का कहानी का वर्णन सुनाती हूं।



आस्तिक मुनि ने समय आने पर जनमेजय को रोकने का प्रयास किया, उस समय जबकि राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु सर्पदंश से होने का कारण जान अत्यंत दुखी और कुपित हो सर्प यज्ञ करके सब सर्पों को मार डालने के लिए विशेष यज्ञ किया।
        जिसमें एक-एक कर सारे सर्प अपने आप खींचे चले आए ,और सारे सर्प और नाग जातियां समाप्त होने लगी, लेकिन जनमेजय तो वास्तविक दोषी तक्षक नाग की ही आहुति देना चाहते थे। 



जब तक्षक नाग ने अपना काल देखा तो उसने जाकर देवराज इंद्र की शरण ली, जिसकी सूचना उत्तम ब्राह्मणों ने जनमेजय को देकर कहा कि तक्षक नाग इंद्र से अभय जाने के कारण ही नहीं आ रहा है, उस समय पूर्ण क्रोध में आए राजा ने क्रोध में आकर कहा यदि ऐसा हैं तो, इंद्र सहित उसका आह्वान किया जाए। 
                    अग्निकुंड की ज्वाला अत्यंत विशाल रूप ले रही थी, और तभी जनमेजय की आज्ञा का जैसे ही ब्राह्मणों ने (इंद्राय तक्षकाय स्वाह) कहकर आहुति देना प्रारंभ किया, स्वयं इंद्र तक्षक नाग के साथ खींचे चले आने लगे। 



तब अपना काल निकट देख तक्षक नाग को इंद्र ने छोड़ दिया, और वह यज्ञ कुंड की ओर खिंचा चला आने लगा, उस समय जब संपूर्ण कुल का अंत निकट देख, आस्तिक मुनि के पिता जरत्कारु और मां मनसा देवी ने उन्हें यज्ञ रोकने के निमित (आशय) भेजा और उन्होंने यज्ञ मंडप में पहुंचकर जनमेजय को अपनी मधुर वाणी से मोह लिया,
                         और ठीक तक्षक को कुंड में गिरने से पहले राजा से सर्पसत्र यज्ञ रोक देने का वचन ले लिया, जिसका रंग  वचनबद्ध जनमेजय ने खिन्न मन से आस्तिक मुनि की बात मान वह यज्ञ बंद करवा दिया और तक्षक नाग को भी मंत्र प्रभाव से मुक्ति प्रदान की। 



इस प्रकार अपने प्राणों को बचाने वाले और कुल की रक्षा करने वाले नाग और सर्पों ने आस्तिक मुनि को वचन दिया कि जो भी तुम्हारा नाम श्रद्धा पूर्वक लेगा, हम उसे कभी भी कष्ट नहीं देंगे, और इसलिए आज भी सर्प रक्षा के लिए आस्तिक मुनि का ध्यान किया जाता है।


इस प्रकार अपनी दादी के मुख से इतनी विस्तृत और उत्तम कहानी को सुन लक्षणा अत्यंत खुश हुई, तब सावित्री देवी ने लक्षणा को बताया की...
नाग जातियां अपनी मानवीय विशेषताओ के चलते बहुत जगह पूजनीय रही है। 
               सर्वशक्तिमान ईश्वर "शिव "नाम से सभी मनुष्यों समान रूप से विद्यमान है, जो नारी में श्रद्धा रूप में तथा परुषों में विश्वास रूप में होता है। 



भगवान शिव नाग जातियो के सभी वंशो के पूजनीय है, भगवान शिव पर विश्वास कर उनकी पूजा करने वालो को शैवधर्मी तथा ऐसे धर्म को शैवधर्म कहते है, तथा इस धर्म से सम्बंधित ग्रन्थों को शैव धर्मशास्त्र कहते है। 
                     शैवधर्म शुद्ध वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक धर्म है जो मनुष्य को मानवता और आध्यात्मिकता के उच्च गुण की ओर ले जाकर मनुष्य का कल्याण करने वाला है।



शैव धर्मशास्त्रो में 'शिव 'ने मनुष्य को ही श्रेष्ठ माना है, शैवधर्म और वैष्णव धर्म हमेशा ही प्रतिद्वंद्वी रहे है, शैवधर्म ,जहाँ लोकधर्म जनसामान्य का धर्म रहा है, वही वैष्णव धर्म राजसी और व्यापारियों का धर्म रहा है, शैवशास्त्रों में वर्णन है कि जब कलियुग में वैष्णव धर्मी संरक्षक भगवान विष्णु नर रूप में ब्राह्मण के घर अवतार लेंगे तब भगवान शिव के गण शैवधर्म की शिक्षाओं का प्रसार कर रहे होंगे।
                                 दुनिया में कई तरह के जीव पाए जाते हैं जिनमें सांपों को सबसे रहस्यमई माना जाता है, खासकर इच्छाधारी सांप जो अपनी इच्छा से कोई भी रूप ले सकते हैं, और अपनी शक्तियों से किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं,



कुछ लोगों का मानना हैं कि, प्राचीन काल में नाग और नागिन एक साथ थे, तभी कुछ शिकारियों ने उन्हें देख लिया उन्होंने नाग-नागिन पर हमला कर दिया, जिस वजह से नाग की जान चली गई और नागिन भी बुरी तरह घायल हो गई, नागिन को बहुत ज्यादा तकलीफ और दुख का सामना करना पड़ा।
                   उसके बाद उस नागिन ने शिवजी की पूजा की, उसकी पूजा से भगवान शिव बेहद खुश हुए और उन्हें उस नागिन पर दया आई, उन्होंने नागिन को चमत्कारी शक्तियां दी, जिससे वह कभी भी अपना रूप बदल सकती थी, साथ ही किसी से भी अपनी सुरक्षा कर सकती थी।



कहा जाता हैं कि वह कोबरा प्रजाति की थी, आज भी अगर कोबरा प्रजाति का सांप सौ साल उम्र पूरी कर ले तो उनके पास नागमणि आ जाती है, जिसकी अलौकिक शक्तियों से वह इच्छाधारी बन जाते हैं, और ये भी कहा जाता है किसी कोबरा के जीवन के सौ साल पूरे करने के बाद स्वाति नक्षत्र की बूंदे उसके मुंह में गिर जाएं तो बाद में यही बूंद विकसित होकर नागमणि बन जाती है।
                यह नागमणि बहुत ज्यादा चमकती है, जिससे सांप अंधेरे में खाना ढूंढ सकता है यह सांप की सारी इच्छाएं पूरी करती है, अगर किसी को यह मणि मिल जाए तो वह हमेशा स्वस्थ रहता है धन धान्य की कमी नहीं होती है, उसकी इच्छाएं भी पूरी होती हैं।


तब सावित्री देवी लक्षणा से कहती है, कि अब बस करो।
इतनी कहानी तुम्हारे लिए जानना काफी है, लेकिन अभी भी लक्षणा के प्रश्न समाप्त नहीं हुए, क्योंकि वह तो नागकुल की नहीं, वरन मां मनसा के साथ नागदेवियों के विषम में सटीक जानकारियां प्राप्त करना चाहती थी, लेकिन शायद उसके प्रश्नों के जवाब सावित्री देवी ना दे पाए, इसलिए अभी इतने से संतुष्ट हो, उसने अपनी दादी के सामने और कोई अतिरिक्त मांग नहीं रखी।

क्रमशः......

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